Tuesday, April 7, 2009

पप्पू मत बने वोट करें ....

कौन पप्पू बनना चाहता है। सब अपने हक़ .....अस्मिता के लिए संघर्षरत हैं... यही आम आदमी का बायो डाटा है। और मैं इस से परे नही हूँ। सवाल ये नही है की सिर्फ़ वोट करना है , सवाल ये है की अप्प्रोप्रिअत उमीदवार को चुनना है॥ अगर मेरी जैसी मुसीबत मेरे दोस्त के गले पड़ जावे ( दोस्त वो जिनने मुझे पप्पू लिखा है ) तो पता चले।
पार्टी के अस्तर से अगर देखें तो मैं बड़ा चूजी हूँ। नेशनल लेवल पर किसी को पसंद करता हूँ तो रीजनल लेवल पर किसी को। बिहार में एक खासी पकड़ रखने वाली पार्टी का मैं पुरजोर समर्थक हूँ। ये अलग बात है की मैं न ही जाति से और न ही पृष्ठभूमि से इस पार्टी का कभी सगा रहा हूँ। ये तो एक भावनत्मक जुडाव है। हुआ यूँ की बिहार के एक लोकप्रिय नेता और इस क्षेत्रीय पार्टी के कदावर सदस्य से मेरा मिलना उनके निजी कार्यालय में हुआ। उनकी आपकता देख ,आश्चर्य मे डूब गया और सोचेने लगा की सफेदपोश नेता लोग क्या इन मंत्री जैसे भी होते हैं। ये मेरा वक्तिगत अनुभब रहा, जिसे बुन कर मैंने उन नेता जी की साफ़ छवि अपने मन मे बना ली और पार्टी का सपोर्टर बन गया।
विचारधारा का बीच मे आना लाजमी है, और इसी पर एक व्यक्ति का वजूद भी टिका है- जो उसे आदमी बनाता है। पर्सनल होते हुए विचारधारा मे परिवर्तन किया जा सकता, लेकिन मुझे नही लगता की कोई ऐसी भी परिस्थति हो सकती है जिसमे वोट डालना जरूरी ही हो। मेरे जैसे सिचुएशन मे पड़ने वाले को नेक सलाह ( अपने मगज मे चाबी भरो ....और उसे सोचने के लिए छोड़ दो।)।

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